बनवारी लाल Chapter-2
गोलोक धाम में माधव की मुरली और गाय के बछड़ो के चिल्लाने की
आवाज साथ –
2 गूंज रही थी | एक आलौकिक प्रकाश
प्रकृति के हर कण में हिलोरे मार रहा था | गोपियाँ और गवाले
माधव की मुरली के रसपान के साथ दूध दोह रहे थे |
ये उस मुरली और भक्ति का प्रताप था, हवा भी अपनी मगनता
छोड़ उस स्वर को उठाये –
2 फिर रही थी | एक कभी ना ढलने
वाले भोर के उजाले में सुंगधित पुष्प अपना सबसे अच्छा रंग और उतम खुशबु प्रकट कर थे, साथ ही आज गोलोक धाम की मिट्टी अपने पूर्ण शीतलता के साथ प्रस्तुत
थी |
आज जगत के पालन हार उनके आगोश में बैठे थे | पीताम्बर वस्त्र पहने, मोर मुकुट, परम तेज निकलते शावला सा शरीर, कमल पुष्पों की पंखडी से होठो पर रखी बासुरी शायद माँ सरस्वती
की वीणा से भी अधिक सुरमय हो गया था |
जब तक मुरली बजती
रही,
प्रकृति खुद अपने नियमों से खेलती रही, हवा,
पानी की गति, सूर्य की ताप, पुष्पों की सीमित खुशु सब कुछ बंधा हुआ था | आखिरी स्वर समाप्त हुआ और जगदीशवर ने करोड़ो लोक समाये अपने उज्वल
नेत्रों को खोले |
वो मनमोहनी सी मासूमियत भरी नजर ने जैसे ही हरकत की, तो मानो पूरी स्रष्टि को रुका देख जानी पहचानी हैरानी जतायी
|
“राधे – राधे....|” कमल की पंखुड़ी जैसे गुलाबी होठों से शब्द निकले ही थे, स्रष्टि ने चलना चालू कर दिया |
अगले ही पल एक अलग ही स्वर उनके कानो में गूंजा तो माधव की शांति
भरी आँखों में एक अलग ही सवाल उत्पन हो गया |
“राधे....?” माधव ने हल्की सी गर्दन
घुमायी तो सोहल श्रंगार,
मुख पर अपार तेज, और आँखों में गुस्सा
लिए राधा रानी सेब को बड़े क्रूर तरीके से काट रही थी |
माधव अपनी मुरली को हिलाते हुए खड़े हो गये | राधा रानी ने फिर से एक तीखी आवाज के साथ सेब का टुकड़ा काट लिया
|
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“ राधे राधे, इस सेब को किसी अपराध का दंड दे रही हो...?” माधव ने उस तीखी सी आवाज से बचते हुए बोला |
“ये कृष्ण मुरारी, गोपालधारी की वाटिका
का सेब है इसलिए...?”
राधा रानी रानी ने फिर से सेब को काट लिए |
“पर तुम इस पर क्रोध उतार क्यों रही हो...?” माधव ने पूछा |
“क्योंकि आप तो उतार नही सकती...|” राधा रानी ने चेहरा घुमाते हुए बोला |
“पर क्रोध आ क्यों रहा है...?” माधव उनके पास आते हुए “कारण तो स्पष्ट हो ?”
“हमे आपसे बात नही करनी...|” राधा रानी ने बनते हुए कहा |
“जैसी तुम्हारी आपकी इच्छा...|” माधव मुरली हिलाते हुए जाने लगे |
“सुनिए ना...|” राधा रानी ने फिर
से पुकारा |
“अभी तो आपने बोला, आपको बात नही करनी...?” माधव ने फिर से सवाल किया |
“जाइये हमे बात नही करनी...|” राधा रानी रानी को फिर से गुस्सा आ गया |
माधव मुस्कारते हुए निकल गये |
शांत झील का किनारा, पानी हवा के साथ
खेलते हुए इधर से उधर घूम रहा था | दूर हंसो के समूह
में अपनी पारिवारिक बातें चल रही थी | मन के विकार मिटाने
वाले उजाला आकाश में फैला हुआ था | राधा रानी झील
के किनारे बैठी उस पूरे दृश्यों को देखती ह्रदय में उतार रही थी |
“अब क्यों खड़े है, हमने तो जाने के
लिए बोला था ना...?”
राधा रानी पानी में पैर चलाते हुए बोली |
“इस स्रष्टि का कौन सा ऐसा कण है राधे, जहाँ मैं जाऊं और तुम वहाँ ना हो...?” माधव उनके पास बैठते हुए “बता दो तो मैं चला जाता हूँ |”
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राधा रानी एक नजर माधव के चेहरे की करोड़ो पुण्य के बाद नसीब
होने वाली मुस्कान को देखती, बिना कोई जवाब दिए सामने
देखने लगी |
“क्या बात है राधे, आज तुम विचलित
क्यों लग रही हो...?”
माधव ने पूछा |
“एक प्रश्न मन में उठ रहा कृष्ण...|” राधा रानी ने माधव को देखा |
“क्या राधे...?” माधव के होठो पर
हल्की सी मुस्कान थी,
मानो जगत के पालन हार को सब कुछ ज्ञात हो, पर समय में छेड़छाड़ करने की सरदर्दी कौन ले ?
“आप सब जानते है कृष्ण, फिर क्यों पूछ
रहे है...?”
राधा रानी ने मुस्कारते माधव की तरफ देखा |
“ये सम्पूर्ण स्रष्टि और इस स्रष्टि के बाहर जो भी है, सब मैं ही तो हूँ, सब कुछ मुझसे जुड़ा
है और मैं सबसे...|”
एक संतुष्टि भरी आवाज के साथ माधव “मुझे परे क्या है, फिर भी एक जीव
की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए मैं उससे अधिक नही जानता, जितना जीव मुझसे आशा करता है |”
“कितना बाते घुमाते है कृष्ण आप...?” राधा रानी ने मुस्कुराते हुए पूछा |
“तुम कोई प्रश्न कर रही थी राधे...?” माधव ने मानो सवाल ही बदल दिया हो |
“मुरली तो मैं कभी भी बजा लेता हूँ, ये तो कोई प्रश्न नही बनता...?” माधव जानबूझ अनजान बन गये |
“परन्तु वो कोई निश्चित समय नही है...?” राधा रानी ने माधव की आँखे में देख सवाल किया |
अगले ही पल माधव के मुख पर करोड़ो दिलों को जीतने वाली मुस्कान
थी |
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|
“बताइए ना कृष्ण...?” राधा रानी ने कुछ मंथन कर रहे माधव का ध्यान तोड़ दिया |
“भूलोक में एक नयी movie लगी है राधे,
आप देखने चलेगी...?” माधव ने पूछा |
“आप सत्य बोल रहे है कृष्ण...?” राधा रानी खुशी के मारे खड़ी हो गयी |
माधव ने खड़े होते हुए अपनी हथेली सामने की और दो movie tickets उनके हाथ में थी | राधा रानी खुशी
के मारे उछलने लगी |
“मैं तैयार होकर आती हूँ...|” राधा रानी अपने भवन की तरफ दौड़ गयी |
“ये स्त्रियाँ भी...|” माधव मुस्कारते
रहे |
शाम का time हो गया था, Movie खत्म हुई और public की भीड़ से निकलते राधा – कृष्ण, normal इंसानों जैसे कपड़े पहने हुए थे |
“Movie
बहुत ही अच्छी थी कृष्ण, मेरे तो आंसू निकल
गये |”
राधा रानी ने उछलते हुए बोला |
माधव अभी भी उनकी बाते सुन मुस्कुरा रहे थे |
“वो सब माया था राधे...|” माधव ने बोला |
“ये सब भी तो माया ही है कृष्ण...|” माधव जैसी शांति चेहरे पर लाते हुए राधा रानी “ये सम्पूर्ण स्रष्टि भी तो माया ही है, और आप भी तो जानबूझ इसी माया के वशीभूत रहते है |”
“अबे side होकर लैला – मजनू बनो ना...|” एक बाइक का horn बजाते हुए आदमी चिल्लाया |
दोनों से उस तरह देखा तो आदमी गुस्से से उन्हें घूर रहा था |
“गली के बीच में ही इश्क फरमाया जा रहा है, साथ ही स्वर्ग जाना है...?” आदमी फिर बोला |
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“ओह...|” माधव ने नीचे देखा तो वो सच में गली के बीच में खड़े थे |
दोनों side हो गये और आदमी बडबडाते
हुए निकल गया |
माधव ने राधा रानी की तरफ देखा, जो हाथ बांधे खड़ी उन्हें देख रही थी |
“क्या, हमारी गलती थी...|” माधव ने आदमी का बचाव किया |
“कृष्ण....|” राधा रानी मुस्कुराने
लगी,
मानो लीलाधर के लीला में फसने पर उन्हें हंसी आ रही थी |
जैसे ही माधव कुछ बोलने लगे, एक सुंगध ने उनका ध्यान खींच लिया | राधा रानी भी माधव
को देख मुस्कुराने लगी |
“आप छाज पीना चाहेगी राधे...?” माधव खुद फैसला कर जवाब राधा रानी के मुख से सुनना चाहते थे |
“अवश्य कृष्ण, आप तो जानते है
मुझे संसार में सबसे प्रिय छाज और माखन ही तो है...|” राधा रानी ने माधव को एक ताना मारा |
थोड़ा आगे चलते ही आमने - सामने दो restaurant थे,
जिनमें एक के counter पर दुकानदार हाथ जोड़कर भगवान के सामने पूजा की तैयारी कर रहा था, जबकि दूसरे वाला counter पर खड़ा चिल्लाते हुए waiter
को order
पूरा करने के लिए बोल रहा था |
“इस पर चलते है...?” पूजा कर रहे आदमी
को देख मुस्कुराती राधा रानी “इसकी दुकान पर भीड़ भी
कम है |”
“तुम सही बोल रही हो...|” माधव ने दूसरी
दुकान पर देखा तो भीड़ थी |
“सुनिए...|” राधा रानी ने दुकानदार
को पुकारा |
दुकानदार ने उन्हें रुकने का इशारा दिया | राधा रानी मुस्कुराते हुए चुप ही गयी | माधव भी आदमी को देख रहे थे |
“सुनिए, हमे...|” माधव ने कहा |
आदमी ने फिर से उन्हें रुकने का इशारा किया |
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“भाईसाहब आप यहाँ आ जाइये, इसका तो आडम्बर आधे घंटे चलने वाला है...|” सामने के restaurant से दुकानदार की आवाज आयी |
दोनों उस तरफ देखने के बाद एक - दूसरे देखने लगे | राधा रानी ने आदमी की तरफ देखा तो उसने ना तो सामने वाले पर
ना ही उन पर ध्यान दिया था |
“वही चलते है कृष्ण...|” राधा रानी बोली
|
दोनों सामने वाले restaurant में चले गये |
दुकानदार अभी भी चिल्ला रहा था |
“राधे - 2...|” दुकानदार अभी सामने खाली
हुए table
की तरफ इशारा करने के बाद “ओये छोटू,
कपड़ा मार...|”
दुकानदार हाँ में गर्दन हिला table की तरफ बैठने का इशारा करता है |
“ये कितना चिल्लाता है...?” राधा रानी दुकानदार को waiter को डांटते देख माधव से
बोली |
“जड़ बुद्धि है...|” कहते हुए कृष्ण
table
पर बैठ गये |
राधा रानी अभी भी सामने वाले दुकानदार को देख रही थी, जो बड़ा मग्न होकर पूजा की तैयारी कर रहा था |
“तुम क्या देख रही हो राधे...?” माधव ने सामने देखते हुए पूछा |
“आज भी मनुष्य में आपके प्रति कितनी श्रद्धा है, देखिये कितना मग्न होकर पूजा की तैयारी कर रहा है...|” राधा रानी बोल ही रही थी, फिर से दुकानदार चिल्लाया |
माधव भी दुकानदार की तरफ देखने लगा |
“माफ़ कीजिए, ये सब सुनते नही तो चिल्लाना
पड़ता है |”
दुकानदार ने कहा |
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दोनों के सामने छाज रखी गयी और माधव बड़े चाव से छाज पीने लगे
| तभी मंदिर की घण्टी की आवाज चारों तरफ गूंज गयी | राधा रानी ने सामने देखा तो आदमी हाथ जोडकर सर से ऊपर उठाये, अपनी परिक्रमा कर पूजा में लग गया | राधा रानी ने मुस्कारते हुए बगल में खड़े दुकानदार को देखा, तो उसने शायद ही एक सेकेंड को हाथ जोड़े होंगे और फिर चिल्लाना
चालू कर दिया |
“कितना सच्चा भक्त है आपका कृष्ण...?” राधा रानी माधव को देखने के बाद “और ये दुष्ट....?”
“राधे, अगर वो मेरा सच्चा भक्त
है तो हम वहाँ होना चाहिए,
हम इस दुष्ट की दुकान पर क्यों बैठे है ?” माधव ने सवाल किया |
“वो आपकी भक्ति करने में व्यस्त है ना....?” राधा रानी ने जवाब दिया |
“ऐसी भी क्या व्यस्त राधे, भगवान दरवाजे पर खड़े आवाज लगाए और भक्त कर्मकांड में लगा रहे...?” माधव ने फिर से सवाल किया |
अब राधा रानी सवाल भरी नजरो के साथ माधव को देखने लगी |
“आपने देखा राधे, मेरे उस भक्त की
दुकान पर ग्रहाक ना के बराबर है और इस दुष्ट की दुकान पर बैठने की जगह भी नही है...|” माधव ने कहा |
“ये क्या लीला है प्रभु...?” शायद राधा रानी ने ये बात note नही की थी |
“भक्ति क्या इसी रूप में हो सकती है राधे, जैसा तुम सामने देख रही हो...?” माधव ने पूछा |
“तो क्या जो कार्य इन्हें जीवनयापन के लिए मिला है, उसको निरंतरता से करना मेरी भक्ति नही है...?” माधव ने कहा |
राधा रानी अब सामने खाली बैठे, आधे घंटे से पूजा कर रहे और बगल में 1 सेकेंड के लिए हाथ जोडकर वापिस कार्य में लग गये दुकानदार के
बीच का फर्क देख रही थी |
“तो क्या वो समय निकल आपका नाम लेकर लगती कर रहा है...?” राधा रानी ने पूछा |
“कर्म विमुक्त होकर गलत पथ पर जाना भक्ति नही है राधे, अगर किसी को सेवा देने से तुम्हारी जीविका चलती है तो, वहाँ बैठकर प्रवचन नही दिए जाते राधे |” माधव मुस्कुराये |
राधा रानी अभी भी सोच में था |
”कर्म पथ पर डटे रहना भी मेरी भक्ति है राधे...|” माधव उठते हुए “और जिस सिद्दांत
की नीव मैंने खुद रखी है,
भला मैं उससे पीछे कैसे हठ सकता हूँ...?”
“तात्पर्य...?” राधा रानी थोड़ा
confuse
थी |
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“तुम्हारे प्रश्न का उत्तर, कर्म में निरंतरता रखनी पडती है, मैं प्रतिदिन मुरली
की धुन से प्रकति में नयी प्राण उर्जा का संचार करता हूँ....|” माधव मुस्कारते हुए “स्रष्टि संचालन
का भार मुझ पर है तो मुझे उसे निभाना भी तो पड़ेगा |”
“आप ये बाते मुझे वहाँ बैठकर भी तो समझा सकते थे...?” राधा रानी मुस्कुराने लगी |
“हाँ समझा तो सकता था, पर तुम्हारे मन
में जो मेरे साथ घुमने जाने की इच्छा थी, उसका क्या होता...?” माधव ने बोहें ऊपर करते हुए पूछा |
“आपने मेरे मन की बात जानी...?” राधा रानी मुस्कुरायी |
“ये भी तुम्हारी ही इच्छा थी राधे...|” माधव ने हाथ हिलाते हुए कहा |
राधा रानी मुस्कुराती हुई उठ गयी |
“राधे – राधे...|” माधव ने हाथ जोड़ते हुए विदाई ली |
तो दोस्तों, हाथी घोड़ा पालकी, जय....?
To be continue…
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Bhagwan krishna best hindi story, बनवारी लाल भाग-2
Reviewed by Mr.Singh
on
January 01, 2020
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